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अमेरिकी यायावर

योगेश कुमार दानी

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प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :150
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9435

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उत्तर पूर्वी अमेरिका और कैनेडा की रोमांचक सड़क यात्रा की मनोहर कहानी


हम दोनों उसे जाते हुए कुछ क्षणों तक देखते रहे, परंतु उसके दृष्टि से ओझल होने के पहले ही मैंने प्रतिमा की तरह खड़ी हुई मेरी एन का हाथ पकड़ा और हम तेज कदमों से पर्वत के रास्ते पर वापस लौट पड़े। अब आगे जाने का कोई मतलब नहीं था। पीछे जाने में भी कितनी समस्या थी यह हमें मालूम नहीं था, पर कम से कम जहाँ से हम आये थे वहाँ का रास्ता देखा हुआ तो था। आगे के रास्ते का तो कुछ भी अंदाजा नहीं था। अचानक मुझे याद आया कि उन डच लोगों के अलावा पूरे रास्ते में हमें कोई और मनुष्य इस पहाड़ी पर नहीं मिला था। इसका मतलब इस समय संभवतः इस पहाड़ी पर और कोई भी नहीं था।
मैने अपनी स्थिति की गंभीरता को देखते हुए पार्क के सहायता केन्द्र को फोन किया और उन्हें बताया कि हमारा एक भालू से सामना हो गया था। पार्क रेंजर ने बड़ी ही सधी हुई आवाज में हमें बताया कि इस क्षेत्र में कुछ भालू रहते हैं, पर वे मनुष्यों को परेशान नहीं करते हैं, जब तक कि उन पर सीधे आक्रमण न कर दिया जाये, अथवा उन्हें मनुष्यों से कोई स्पष्ट खतरा न प्रतीत हो। रेंजर ने कहा कि डरने की कोई बात नहीं है, परंतु आप सतर्क अवश्य रहिए।
उसकी बात सुनते-सुनते अचानक मुझे हॉलीवुड की फिल्म “केप फियर” की याद सिहरा गई। उस फिल्म में अलास्का में प्लेन खराब हो जाने के बाद मीलों फैले जंगल में किस प्रकार एक भालू एंथोनी हॉपकिन्स और उसके दो साथियों के पीछे पड़ जाता है। मीलों फैले क्षेत्र में जहाँ भालुओं को आसान भोजन केवल गर्मी में ही मिलता हो, उनका आपदा में पड़े मनुष्यों को भोजन बनना प्रकृति का साधारण व्यवहार है। भालू उनके एक साथी को तो मार ही डालता है। मुझे अपने बारे में अच्छी तरह से मालूम था कि मैं स्वयं, एंथोनी हॉपकिन्स जितना समझदार और ऐसी परिस्थितियों में अपने को संभाल सकने लायक व्यक्ति नहीं हूँ।  
अपने ही भयभीत कर देने वाले विचारों में उलझे हुए अचानक मुझे मेरी एन के भी वहाँ होने की याद आई। मैंने बायें हाथ से पकड़ी हुई मेरी एन की दायीँ हथेली को जोर से जकड़ लिया और उससे एक निहायत ही बेवकूफी भरा सवाल पूछा, “आप को डर तो नहीं लग रहा है?” मेरी एन के मुँह से कोई आवाज नहीं निकली, उसने सहमति अथवा असहमति में सिर भी नहीं हिलाया। मैंने उसे अपनी ओर घुमाया और सीधे उसकी आँखों में देखते हुए कहा, “अब हम खतरे से बाहर हैं, और शायद वह भालू उतना हिंसक भी नहीं था और फिर यह तो जंगल है, और यहाँ जंगली जानवर तो होते ही हैं।”  
यह अलग बात है कि मेरे पिछले वाक्य प्रभाव कितना गहरा हो सकता है, उसका अंदाजा हमें अभी कुछ मिनटों पहले ही हुआ था। मैने सहानुभूति के रूप में अपना बायाँ हाथ उसके कंधे से ले जाकर उसके बायें कंधे पर रखा और कुछ क्षणों के लिए अपने पास सिमटा लिया। फिर उसकी दायीं हथेली अपने बायीं हथेली में लेकर तेज कदमों से पहाड़ी से नीचे उतरने लगा। हम लोग अधिक से अधिक 12 से 15 मिनटों में ही उतरकर नीचे आगंतुक केन्द्र के समीप पहुँच गये।  
जैसे ही हम जंगल से निकल कर पार्किंग की ओर अपनी कार की ओर बढ़े मुझे ऐसा लगा कि जैसे अचानक हम एक बहुत ही सुरक्षित स्थान पर पहुँच गये हैं। मेरी एन अब भी कुछ भी नहीं बोल रही थी। कार के पास पहुँचकर पहले मैने उसे दायीं ओर की सीट पर बैठाया और फिर घूमकर ड्राइवर की सीट पर आ बैठा। कार स्टार्ट करके मैने एयरकंडीशनर चला दिया। हम वहाँ से कार लेकर तुरंत ही निकल पड़े। वहाँ से होटल का रास्ता नितांत सन्नाटे में बीता। हम दोनो अपने-अपने विचारों में खोए हुए थे।  रास्ते में सड़क निर्माण कार्य के कारण ट्रैफिक धीमा था। रूट 80 के एक हिस्से में तो शायद एक दो मील का रास्ता तय करने में ही हमें लगभग 45 मिनय से एक घंटा लग गया होगा। पर हम कुछ ऐसे सदमें में थे कि रेडियो, हिन्दी या अंग्रेजी गाने आदि कुछ भी न चलने के बाद भी हम आपस में कोई भी बात नहीं कर पा रहे थे। हमें होटल के पास पहुँचते-पहुँचते लगभग साढ़े सात बज रहे थे। पहले मेरा विचार था कि हम लौटते समय मार्ग में पड़ने वाली एक माल में जाकर कुछ समय बितायेंगे और फिर वहीं से भोजन करके वापस लौटेंगे, पर अब मेरी कहीं भी जाने में कोई विशेष दिलचस्पी नहीं थी। मेरी एन भी एकदम चुप और कहीं बहुत गंभीर विचारों में खोई हुई थी।  
रास्ते में मैने मेरी एन से पूछा, “आप भोजन कहाँ करना चाहेंगी?” तो उसने धीमे स्वर में कहा, “ जहाँ भी तुम चाहो।“ स्पष्ट था कि वह अभी भी सदमें से उबर नहीं पायी थी। होटल पहुँचकर हम जब अपने कमरे में पहुँच गये तो मैने मेरी एन से कहा, “मैं खाने के लिए सबवे सैंडविच लेकर आता हूँ,” इस पर भी वह कुछ नहीं बोली। लेकिन जैसे ही मैं कमरे से बाहर निकलने लगा, तब वह अचानक बोल पड़ी, “मैं भी साथ चलती हूँ।“

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