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अंतस का संगीत

अंसार कम्बरी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :113
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9545

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मंच पर धूम मचाने के लिए प्रसिद्ध कवि की सहज मन को छू लेने वाली कविताएँ


रख ली सच्चे प्रेम की, ताजमहल ने लाज।
इसीलिये माना इसे, दुनिया ने सरताज।।131

शाहजहाँ की आत्मा, होगी बहुत निराश।
विकट प्रदूषण कर रहा, ताजमहल का नाश।।132

देख-देख पर्यावरण, बहा रहा है नीर।
ताजमहल किससे कहे, अपने मन की पीर।।133

वो कविता करते नहीं, करते हैं छलछंद।
लगा रहे हैं टाट में, मखमल के पैबंद।।134

जिसका ऊँचा भाव है, वही बड़ा फनकार।
इसीलिये होने लगा, कविता का व्यापार।।135

ढाई आखर छोड़ जब, पढ़ते रहे किताब।
मन में उठे सवाल का, कैसे मिले जवाब।।136

ऐसे गीत सुनाइये, रचिये ऐसे छंद।
शब्द-शब्द में अर्थ हो, अर्थ-अर्थ आनन्द।।137

आते-आते कंठ तक, मौन हुये संवाद।
आखों-ओंखों हो गया, अंतस का अनुवाद।।138

आज न जाने किस तरह, उसने किया सिंगार।
ठगे-ठगे हम रह गये, उसका रूप निहार।।139

प्रियतम मेरा चाँद सा, जब कमरे में आय।
अँधियारा भी दूर हो, दीपक भी शरमाय।।140

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