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धर्म एवं दर्शन >> अमृत द्वार

अमृत द्वार

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :266
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9546

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ओशो की प्रेरणात्मक कहानियाँ

ये जो तीन मजदूर थे उस मंदिर को बनाते करीब-करीब हम भी इन तीन तरह के लोग हैं जो जीवन के मंदिर को निर्मित करते हैं। हम सभी जीवन के मंदिर को निर्मित करते हैं, लेकिन कोई जीवन के मंदिर को निर्मित करते समय क्रोध में भरा रहता है, क्योंकि वह पत्थर तोड़ रहा है। कोई उदासी से भरा रहता है क्योंकि वह केवल रोजी-रोटी कमा रहा है। लेकिन कोई आनंद से भर जाता है, क्योंकि वह परमात्मा का मंदिर बना रहा है। जीवन को हम जैसा देखते हैं, जीवन को देखने की हमारी जो चित्त दशा होती है, वह जीवन की हमारी अनुभूति भी बन जाती है। जीवन को देखने की जो हमारी भाव दृष्टि होती है वही हमारे जीवन का अनुभव, जीवन की प्रतीति और जीवन का साक्षात्कार भी बन जाती है। पत्थर तोडते हुए से भगवान का मंदिर बनाने की जिसकी दृष्टि है, वह आनंद से भर जाएगा। ओर हो सकता है, पत्थर तोड़ते-तोड़ते उसे भगवान का मिलन भी हो जाए। क्योंकि उतनी आनंद की मनःस्थिति पत्थर में भी भगवान को खोज लेती है। आनंद के अतिरिक्त परमात्मा के निकट पहुँचने का और कोई द्वार नहीं है। लेकिन जो क्रोध और पीड़ा में काम कर रहा हो, उसे भगवान की मूर्ति में भी सिवाय पत्थर के और कुछ भी नहीं मिल सकता है। क्रोध की दृष्टि पत्थर के अतिरिक्त कुछ भी उपलब्ध नहीं कर पाती है। जो उदास है, जो दुखी है, वह अपनी उदासी और दुख को ही पूरी जीवन में फैला हुआ देख लें तो आश्वर्य नहीं है। हम वही अनुभव करते हैं, जो हम होते हैं। हम वही देख लेते हैं जो हमारी देखने की दृष्टि होती है। जो हमारा अंतर्भाव होता है।

दो सूत्रों के संबंध में मैंने कल और उससे पहले आपसे बात की है। पहला सूत्र था जीवन क्रांति के लिए, परमात्मा की दिशा में आँखें उठाने के लिए।

पहला सूत्र था  विश्वास नहीं,  बिचार।

दूसरा सूत्र था  ज्ञान नहीं, विस्मय।

और तीसरा सूत्र  है  दुःख नहीं, आनंद।

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