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धर्म एवं दर्शन >> अमृत द्वार

अमृत द्वार

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :266
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9546

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ओशो की प्रेरणात्मक कहानियाँ

हम सारे लोग जीवन को दुख और पीडा से ही देखते हैं और हजारों वर्षों की शिक्षाओं ने, गलत शिक्षाओं ने जीवन को आनंद के भाव से देखने की हमारी क्षमता ही नष्ट कर दी है। जीवन को हम, वे लोग जो अपने धार्मिक समझते हैं, जीवन को असार, व्यर्थ, दुख भरा, ऐसा देखने के आदी हो गए हैं। न मालूम किस दुर्भाग्य के क्षण में मनुष्य जाति के ऊपर यह कालिमा आ पडी। न मालूम किस दुर्भाग्य के क्षण में मनुष्य जाति को यह खयाल पैदा हो गया कि परमात्मा और जीवन में कोई विरोध है। तो परमात्मा की तरफ केवल वे ही जा सकते हैं जो जीवन को बुरा, असार, दीन-हीन; घृणित, कंडमनेशन जो जीवन का करें वे ही केवल परमात्मा की ओर जा सकते हैं। इस दृष्टि ने सारी मनुष्य जाति के चित्त को अंधकार और पीड़ा से भर दिया है। इस दृष्टि ने फिर परमात्मा को खोजने की दिशा ही बंद कर दी, द्वार ही बंद कर दिए। क्योंकि उसे जानने के लिए आनंद से थिरकता हुआ हृदय चाहिए, गीत गाती हुई श्वासें चाहिए, नृत्य करता हुआ चित्त चाहिए तो ही हम उसके अनुभव को उपलब्ध हो सकते हैं, क्योंकि हम अगर आनंद को उपलब्ध होना चाहते हैं तो आनंद के अतिरिक्त, आनंद तक पहुँचने का कोई मार्ग नहीं हो सकता।

एक छोटे से गाँव में सुबह ही सुबह एक बैलगाड़ी आकर रुकी। और उस बैलगाड़ी के मालिक ने उस गाँव के दरवाजे पर बैठे हुए एक बूढ़े आदमी से पूछा, ऐ बूढ़े। इस गाँव के लोग कैसे हैं? मैं इस गाँव में स्थायी रूप से निवास करना चाहता हूँ। क्या तुम बता सकोगे, गाँव के लोग कैसे हैं? उस बूढ़े ने उस गाड़ी वाले को नीचे से ऊपर तक देखा। उसकी आवाज को खयाल किया, उसने आते ही कहा, ऐ बूढ़े! वृद्धजनों से यह बोलने का कैसा ढंग है? फिर उस बूढ़े ने उससे पूछा कि मेरे बेटे, इसके पहले कि मैं तुझे बताऊं कि इस गाँव के लोग कैसे हैं, मैं यह जान लेना चाहूँगा कि उस गाँव के लोग कैसे थे, जिसे तू छोड़कर आ रहा है। क्योंकि उस गाँव के लोगों के संबंध में जब तक मुझे पता न चल जाए तब तक इस गाँव के संबंध में कुछ भी कहना संभव नहीं है। उस आदमी ने कहा, उस गाँव के लोगों की याद भी मत दिलाओ, मेरी आँखों में खून उतर आता है। उस गाँव जैसे दुष्ट, उस गाँव जैसे पापी, उस गाँव जैसे बुरे लोग जमीन पर कहीं भी नहीं हैं। उन दुष्टों के कारण ही तो मुझे वह गाँव छोड़ना पड़ा है। और किसी दिन अगर मैं ताकत इकट्ठी कर सका तो उस गाँव के लोगों को मजा चखाऊंगा। उस गाँव के लोगों की बात ही मत छेड़ो। उस बूढ़े ने कहा, मेरे बेटे, तू अपनी बैलगाडी आगे बढ़ा। मैं सत्तर साल से इस गाँव में रहता हूँ, मैं तुझे विश्वास दिलाता हूँ, इस गाँव के लोग उस गाँव के लोगों से भी बुरे हैं। मैं अनुभव से कहता हूँ। इस गाँव से बुरे जैसे आदमी तो कहीं भी नहीं हैं। अगर तू यहाँ रहेगा तो पाएगा कि उस गाँव के लोगों से यह गाँव और भी बदतर है। तू कोई और गाँव खोज ले। जब उसने बैलगाडी बढ़ा ली तो उस बूढ़े ने कहा, और मैं जाते वक्त तुझसे यह भी कहे देता हूँ, कि इस पृथ्वी पर कोई भी गाँव तुझे नहीं मिल सकता, जिस गाँव में उस गाँव से बुरे लोग न हों। लेकिन वह आदमी तो जा चुका था।

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