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धर्म एवं दर्शन >> अमृत द्वार

अमृत द्वार

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :266
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9546

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ओशो की प्रेरणात्मक कहानियाँ

वह गया भी नहीं था कि एक घुड़सवार आकर रुक गया और पूछा कि इस गाँव के लोग कैसे है? मैं भी इस गाँव में ठहर जाना चाहता हूँ। उस बूढ़े ने कहा, बड़े आश्वर्य की बात है। अभी-अभी एक आदमी यही पूछकर गया है। लेकिन मैं तुमसे भी पूछना चाहूँगा कि उस गाँव के लोग कैसे थे, जहाँ से तुम छोड़कर आए हो। उस घुड़सवार की आँखों में कोई जैसे रोशनी आ गई। उसके प्राणों में जैसे कोई गीत दौड़ गया। जैसे किसी सुगंध से उसकी श्वासें भर गयीं और उसने कहा, उस गाँव के लोगों की याद भी मुझे खुशी की आँसुओं से भर देती है, इतने प्यारे लोग हैं। पता नहीं, किस दुर्भाग्य के कारण मुझे वह गाँव छोड़ना पड़ा। अगर कभी सुख के दिन वापस लौटेंगे तो मैं वापस लौट जाऊंगा उसी गाँव में, वही गाँव मेरी कब बने, यही मेरी कामना रहेगी। उस गाँव के लोग बड़े भले हैं। इस गाँव के लोग कैसे हैं? उस बूढ़े ने उस जवान आदमी को घोड़े से हाथ पकड़कर नीचे उतार लिया, उसे गले लगा लिया और कहा, आओ, हम तुम्हारा स्वागत करते हैं। उस गाँव के लोगों को मैं भली भांति जानता हूँ। सत्तर साल से जानता हूँ। इस गाँव के लोगों को तुम उस गाँव के लोगों से बहुत भला पाओगे। ऐसे भले लोग कहीं भी नहीं है।

आदमी जैसा होता है, पूरा गाँव वैसा ही उसे दिखायी पड़ता है। आदमी जैसा होता है, पूरा जीवन उसे वैसा ही प्रतीत होता है। आदमी जैसा होता है संसार उसे वैसा ही मालूम होने लगता है। जो लोग भीतर दुख से भरे हैं और जिनकी जीवन दृष्टि अंधेरी है वे लोग कहते हैं कि जीवन दुःख है, जीवन अंधकार है, जीवन माया है। ये घोषणाएं धार्मिक आदमी की घोषणाएं हैं। यह उन लोगों की घोषणाएं हैं--जीवन की निंदा की, जीवन की कुरूपता की, जीवन की पीड़ा की घोषणाएं उन लोगों की घोषणाएं हैं जिन्होंने आनंद के भाव को खो दिया है; जीवन को लोगों की घोषणाएं हैं जिन्होंने आनंद के भाव को खो दिया है; जीवन को देखने की जिनकी क्षमता खो गयी है। जो उनके भीतर है वही वह पूरे जीवन पर फैला कर देख सकते हैं। जो उन्हें दिखाई पड़ रहा है वह उनके अंतर्भाव का ही प्रोजेक्शन है, वह उनका ही प्रक्षेपण है। लेकिन इन लोगों ने पिछले तीन हजार वर्षों तक धर्म को दिशा दी इसलिए धर्म विकृत हुआ, धर्म मार्गच्युत हुआ। और सारी मनुष्य जाति धीरे-धीरे अधार्मिक होती चली गई।

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