उपन्यास >> अपने अपने अजनबी अपने अपने अजनबीसच्चिदानंद हीरानन्द वात्स्यायन अज्ञेय
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अज्ञैय की प्रसिद्ध रचना
यह मैं सोचती हूँ; लेकिन साथ ही मुझे लगता है कि ऐसा सोचना बेईमानी है - कि ऐसा हो नहीं सकता। बल्कि कभी-कभी उसको देखते-देखते मेरा अपरिचय का भाव इतना घना हो जाता है कि मेरा मन होता है, उसके कन्धे पकड़कर उसे झकझोर दूँ और पूछूँ - 'तुम कौन हो?' मेरी मुट्ठियाँ भिंच जाती हैं और मैं उसके सामने से हट जाती हूँ क्योंकि मुझे एकाएक अपने आपसे डर लगने लगता है। न जाने क्या कर बैठूँ!
22 दिसम्बर :
विश्वास नहीं होता कि मुझे यहाँ दबे-दबे एक पखवाड़ा हो गया है। रसोई और भंडार-घर की दीवारों से थोड़ा-थोड़ा पानी रिसकर अन्दर आता रहा है और अब हम बहुत-सी चीजें बड़े कमरे में ही उठा लाये हैं। भंडारे से एक छोटा किवाड़ उधर का खुलता है जिधर लकड़ियों का ढेर रखा रहता है। लकड़ियाँ लाने के लिए रास्ता बाहर से है, जो कि अब बन्द है। इस किवाड़ को थोड़ा ठेल-ठालकर एक-दो लकड़ियाँ खींचने का रास्ता बन गया। लकड़ियाँ खींचीं तो किवाड़ तनिक-सा और खुल सका, और इस प्रकार अब थोड़ी-थोड़ी लकड़ियाँ भीतर लाने का मार्ग बन गया है। लकड़ियाँ भीग गयी हैं और किवाड़ खोलने से थोड़ा-थोड़ा पानी भी भंडारे के अन्दर आता है, लेकिन उसकी चिन्ता नहीं है। हम लोग जो कुछ थोड़ा-बहुत खाना पकाते हैं, बैठने के कमरे में बड़े स्टोव पर ही; उसी के सहारे लकड़ियाँ टेक दी जाती हैं जो धीरे-धीरे सूखती रहती हैं। और दूसरे-तीसरे चिमनी भी जला लेते हैं जिससे एक अनोखा लाल-लाल प्रकाश कमरे में फैल जाता है। कब्रगाह के अन्दर आग का लाल प्रकाश - क्या यही नरक की आग है? आज मैं एकाएक आंटी से यही पूछ बैठी। मैंने कहा, 'इस लाल-लाल आग को देखकर लगता है कि शैतान अभी चिमनी के भीतर से उतरकर कब्र में आ जाएगा हमसे हिसाब करने।' और बात को हलका करने के लिये एक नकली हँसी हँस दी।
आंटी अगर चौंकीं भी तो उन्होंने दीखने नहीं दिया। थोड़ी देर मेरी ओर देखती हुई चुप रहीं और फिर बोलीं, 'चिमनी से उतरकर शैतान नहीं आता, सन्त निकोलस आता है -क्रिसमस को अब कितने दिन हैं?'
मुझे बात वहीं छोड़ देनी चाहिए थी। लेकिन मैंने जिद करके कहा, 'सन्त निकोलस आता होगा वहाँ ऊपर - कब्र में थोड़े ही आएगा।'
बुढ़िया ने पूछा, 'योके, तुम्हारा ध्यान हमेशा मृत्यु की ओर क्यों रहता है?'
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