उपन्यास >> अपने अपने अजनबी अपने अपने अजनबीसच्चिदानंद हीरानन्द वात्स्यायन अज्ञेय
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अज्ञैय की प्रसिद्ध रचना
मैंने पूछा, 'ओढ़ने को कुछ ला दूँ ?'
उन्होंने मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं दिया। बल्कि जो कहा उससे बिलकुल स्पष्ट था कि बात टाली जा रही है - कि उन्हें यह पसन्द नहीं कि मैं उनकी तरफ अधिक ध्यान दूँ।
21 दिसम्बर :
हम समय की बात करते हैं, जोकि एक प्रवाह है। किसका प्रवाह है? क्षण का। लेकिन क्षण क्या है? यह जानने का मेरे पास कोई उपाय नहीं है। एक ढंग है घड़ी के टिक्-टिक् के और भी खंड किये जा सकते हैं और माना जा सकता है कि वैसा छोटा-से-छोटा खंड क्षण है। विज्ञान के तरीके दूसरे भी हैं - निरे गणित से सिद्ध किया जा सकता है कि समय का छोटे-से-छोटा अविभाज्य अंश कितना होता है और उस अंश को भी क्षण कहा जा सकता है।
लेकिन ऐसा विज्ञान और ऐसी जानकारी किस काम की? हमारे लिए समय सबसे पहले अनुभव है - जो अनुभूत नहीं है वह समय नहीं है। सूर्य की गति समय नहीं है, बल्कि उस गति के रहते क्रमश: जो कुछ होता है उसका होते रहना ही समय की माप है। और अनुभव की भाषा में 'क्षण' क्या है?
समय मात्र अनुभव है, इतिहास है। इस सन्दर्भ में 'क्षण' वही है जिसमें अनुभव तो है लेकिन जिसका इतिहास नहीं है, जिसका भूत-भविष्य कुछ नहीं है; जो शुद्ध वर्तमान है, इतिहास से परे, स्मृति के संसर्ग से अदूषित, संसार से मुक्त। अगर ऐसा नहीं है, तो वह क्षण नहीं है, क्योंकि वह काल का कितना ही छोटा खंड क्यों न हो उसमें मेरा जीना काल-सापेक्ष जीना है, ऐतिहासिक जीना है। वह बिन्दु नहीं है रेखा है; रेखा परम्परा है और क्षण परम्परामुक्त होना चाहिए।
आंटी सेल्मा इन बातों को नहीं सोच सकती; नहीं तो मैं उससे इस बारे में बात करती। उसके जीवन में कुछ है जो इन सब बातों से बिलकुल अलग है। वह मेरे लिए अजनबी है, लेकिन लगता है कि उसमें कुछ ऐसा सच है जो मैंने नहीं जाना। मेरे सच से बिलकुल अलग और दूसरा सच!... वह सच भी काल-निरपेक्ष नहीं है - सेल्मा भी काल में ही जीती है जैसे कि हम सब जीते हैं, लेकिन वह मानो किसी एक काल में नहीं जीती बल्कि समूचे काल में जीती है। मानो वहाँ फिर काल एक प्रवाह नहीं है, उसमें कुछ भी आगे-पीछे नहीं है बल्कि सब एक साथ है। सब एक साथ है, इसलिए इतिहास नहीं है। इसीलिए स्मृति है, और उसके साथ ही परस्परता से मुक्ति है - सभी कुछ क्षण है।
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