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धर्म एवं दर्शन >> असंभव क्रांति

असंभव क्रांति

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :405
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9551

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माथेराम में दिये गये प्रवचन

नानक जाकर मक्का में पैर करके सो गए थे--पवित्र मंदिर के पत्थर की तरफ। बड़े कठोर रहे होंगे। प्रेम मन में जरा भी नहीं रहा होगा, नहीं तो क्या जरूरत थी, पैर और कहीं भी तो किए जा सकते थे। पवित्र पत्थर की तरफ पैर करके सोने की क्या जरूरत थी पुजारी भागे हुए आए थे और उन्होंने कहा था, नासमझ। पैर किए हुए हैं पवित्र मंदिर की तरफ। हटाओ पैर यहाँ से। नानक ने कहा, तुम्हीं मेरे पैर उस तरफ कर दो, जहाँ परमात्मा न हो।

बड़ी चोट थी।

उन थोड़े से लोगों ने, जिन्होंने आदमी को चोट पहुँचाने का प्रेम दिखलाया है, उन्होंने आदमी को विकसित किया है। जिनने थोड़ी चोट पहुँचाने का प्रेम दिखलाया, उन्होंने ही मनुष्य की चेतना को आगे बढ़ाया है। जिस दिन ऐसे लोगों की संख्या ज्यादा से ज्यादा होगी, जो चोट पहुँचा सकते हैं, जिनका प्रेम यह साहस कर सकता है, उस दिन मनुष्य के जीवन में बड़ी क्रांतियां संभावी हैं।

तो मैं तो प्रार्थना करूंगा मधुर शब्दों को मत खोजे। मधुर शब्द होने से ही प्रेम नहीं हो जाता। शब्दों की पीछे क्या आकांक्षा है उसे खोजे। उन्होंने कहा है कि आप संन्यासियों के संबंध में जो कहते हैं, उससे संन्यासी आपके दुश्मन हो रहे हैं। अगर वे दुश्मन हो जाएंगे, तो मैं जो कह रहा हूँ, वह सिद्ध हो जाएगा कि सही था।

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