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गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :590
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9552

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हिन्दुओं में यह किंवदंति है कि यदि महाभारत की कथा की जायें तो कथा समाप्त होने से पूर्व ही सुनने वालों में लाठी चल जाती है।


‘‘तो इस नोरा से विवाह कर लीजिये। मुझको आप बहुत भले प्रतीत होते हैं।’’

‘‘मैं चकित हो उसका मुख देखता रह गया। इससे उसके गालों पर लालिमा आ गई और उसने आँखें झुका लीं। मैं समझ गया कि उसके पुराने संस्कार जाग्रत हो गये हैं। मैंने अपने मन की बात कह दी।’’

‘‘वह तो विवाह के लिए मेरे साथ अपने घर से भागने को तैयार हो गई थी।’’

‘‘यहाँ इसकी आवश्यकता नहीं पड़ेगी। कदाचित् उसके पिता ने आपको पसन्द नहीं किया होगा और अपनी लड़की का आग्रह उसने माना नहीं होगा।’’
‘‘तो क्या...।’’ मैं कहता-कहता रुककर उसके मुखकी तरफ देखता रह गया।

‘‘नहीं मेरे पिता आपको नहीं जानते। किन्तु मेरा विश्वास है कि मेरे आग्रह को टालेंगे नहीं। ये आपके साथ कौन लोग हैं?’’

‘‘यह मेरे मित्र का परिवार है। मुझे ये लोग अपने छोटे भाई के समान समझते हैं।’’

‘‘आप कहाँ रहते हैं?’’

‘‘३-१५ एस्टेट बिल्डिंग, फोर्ट एरिया में मेरा कार्यालय है और ३-१४ में मैं रहता हूँ।’’
‘‘कल प्रातः आठ बजे आप मेरे पिताजी की प्रतीक्षा करें।’’
‘‘यदि आप कहें तो मैं सात समुद्र पर जाकर भी आपकी प्रतीक्षा कर सकता हूँ।’’

‘‘अगले दिन सरोजिनी के पिता आये और मेरा कारोबार देखकर मेरी सगाई कर गये और अब मुझको विवाह के लिए बुलाया है।’’

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