उपन्यास >> अवतरण अवतरणगुरुदत्त
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हिन्दुओं में यह किंवदंति है कि यदि महाभारत की कथा की जायें तो कथा समाप्त होने से पूर्व ही सुनने वालों में लाठी चल जाती है।
‘‘यह तो युद्ध काल की नीति का प्रश्न था। युद्ध से पूर्व तो कृष्ण ने कभी झूठ नहीं बोला था। युद्ध से पूर्व अर्जुनादिक पाण्डव-पक्ष के लोगों ने लाखों को छोड़ दस-बीस की भी हिंसा नहीं की थी। मेरे कहने का अभिप्राय यह है कि युद्ध-पूर्व अर्थात् साधारण परिस्थिति में श्रेष्ठ और दुष्ट की परीक्षा की जानी चाहिए। ‘विनाशाय च दुष्कृताम् के लिए कृष्ण का युद्ध कालीन झूठ और अर्जुनादि की हिंसा अनुचित नहीं कही जा सकतीं।’’
मैंने हँसते हुए पूछा, ‘‘एवरी थिंग इज़ फेयर इन लव ऐण्ड वार’ के सिद्धान्त को आप मानते हैं न?’’
‘‘न! लव में नहीं।’’ उसने मुस्कराते हुए कहा, ‘‘वह इस कारण कि जिससे लव किया जायेगा वह दुष्ट है अथवा भला व्यक्ति, यह कहा नहीं जा सकता। युद्ध में भी ‘‘एवरी थिंग इज़ फेयर’ का सिद्धान्त तभी चल सकता है, जब विपक्षी दुष्ट हों।’’
‘‘यह कैसे जाना जाय कि विपक्षी दुष्ट है और हमारा पक्ष ही श्रेष्ठ आदमियों का है। प्रायः युद्ध के समय तो दोनों पक्ष स्वयं को ठीक मानते हैं।’’
‘‘किसी के स्वयं के मानने से तो कुछ होता नहीं। शास्त्र ने परीक्षा के लिए कसौटी बना दी है। उस पर परखकर ही तो हम किसी पक्ष के श्रेष्ठ अथवा बुरा होने का निर्णय कर सकते हैं। देखिये, मैं आपको अपने काल के एक उदाहरण से समझा देता हूँ।’’
‘‘भारत में पुरुवंश की नींव ही इनके एक पूर्वज के अयुक्तिसंगत व्यवहार से पड़ी थी। इसे आप कृष्ण द्वैपायन के शब्दों में ही सुनिये।’’ माणिकलाल ने आँखें मूँदकर कुछ क्षण तक विचार किया और उसके बाद इस प्रकार कहना आरम्भ किया–
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