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गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :590
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9552

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हिन्दुओं में यह किंवदंति है कि यदि महाभारत की कथा की जायें तो कथा समाप्त होने से पूर्व ही सुनने वालों में लाठी चल जाती है।


‘‘सुरराज से भेंट हो गई है क्या?’’

‘‘नहीं आज भेंट होने की आशा नहीं।’’

‘‘तो यहाँ ही रहना पड़ेगा। जब तक सुरराज की स्वीकृति नहीं मिलती, तब तक यहाँ ठहरने को स्थान नहीं मिल सकता।’’

‘‘तो यहाँ बाहर खुले में ही पड़ा रहना होगा?’’

‘‘यह तो भाई! द्वारपाल ही बता सकेगा।’’

‘‘आप कहाँ से आये हैं?’’ मैंने पूछ लिया।

‘‘मैं गाँधार राज का संदेश लेकर आया हूँ। प्रातः काल से यहाँ खड़ा हूँ, अभी स्वीकृति नहीं मिली।’’

‘‘कहाँ ठहरे हैं?’’

‘‘अभी कहीं भी नहीं। मेरा सामान नगर-द्वार पर खच्चरों पर लदा पड़ा है। ज्यों ही स्वीकृति मिलेगी मैं अपने निवास के लिए स्थान पूछ लूँगा।’’

‘‘और यदि रात तक तुम्हारी बारी नहीं आई तो?’’
‘‘नहीं ऐसा नहीं हो सकता। मैं गांधार राज श्रीमान रैवत महाराज का संदेश लेकर आया हूँ। कश्मीर और गांधार की सीमाएँ मिलती हैं। अतः पड़ोसी राजाओं का कुछ तो मान इन्द्र को करना ही पड़ेगा।’’

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