धर्म एवं दर्शन >> भज गोविन्दम् भज गोविन्दम्आदि शंकराचार्य
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ब्रह्म साधना के साधकों के लिए प्रवेशिका
दिनयामिन्यौ सायं प्रातः,
शिशिरवसन्तौ पुनरायातः।
कालः क्रीडति गच्छत्यायुः,
तदपि, न मुन्च्त्याशावायुः ॥12॥
(भज गोविन्दं भज गोविन्दं,...)
दिन और रात, शाम और सुबह, सर्दी और बसंत बार-बार आते-जाते रहते हैं। काल (समय) अपना खेल खेलता है, आयु घटती है, परन्तु इच्छाओं में कमा नहीं होती॥12॥
(गोविन्द को भजो, गोविन्द को भजो,.....)
dinayaaminyau saayam praatah
shishiravasantau punaraayaatah
kaalah kriidati gachchhatyaayuh
tadapi na mujncatyaashaavaayuh ॥12॥
Day and night, dusk and dawn, winter and spring come and go. In this sport of Time entire life goes away, but the storm of desire never departs or diminishes. ॥12॥
(Chant Govinda, Worship Govinda…..)
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