धर्म एवं दर्शन >> भज गोविन्दम् भज गोविन्दम्आदि शंकराचार्य
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ब्रह्म साधना के साधकों के लिए प्रवेशिका
यावद्वित्तोपार्जनसक्त:,
तावन्निजपरिवारो रक्तः।
पश्चाज्जीवति जर्जरदेहे,
वार्तां कोऽपि न पृच्छति गेहे ॥5॥
(भज गोविन्दं भज गोविन्दं,...)
जब तक तुम्हारे अन्दर धन कमाने और बचाने की शक्ति है तभी तक तुम्हारे आश्रित तुमसे चिपके रहेंगे। पीछे जब तुम बूढ़े हो जाओगे और शरीर निर्बल हो जायेगा तब तुम्हारे घर का कोई भी व्यक्ति तुमसे बात भी नहीं करेगा॥5॥
(गोविन्द को भजो, गोविन्द को भजो,.....)
yaavadvittopaarjana saktah
staavannija parivaaro raktah
pashchaajjiivati jarjara dehe
vaartaam koapi na prichchhati gehe ॥5॥
As long as a man is fit and capable to earn money, everyone in the family show affection towards him. But after wards, when the body becomes weak no one enquires about him even during the talks. ॥5॥
(Chant Govinda, Worship Govinda…..)
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