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धर्म एवं दर्शन >> भज गोविन्दम्

भज गोविन्दम्

आदि शंकराचार्य

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :37
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9557

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ब्रह्म साधना के साधकों के लिए प्रवेशिका

यावत्पवनो निवसति देहे,
तावत् पृच्छति कुशलं गेहे।
गतवति वायौ देहापाये,
भार्या बिभ्यति तस्मिन्काये ॥6॥

(भज गोविन्दं भज गोविन्दं,...)

जब तक इस शरीर में प्राण रहते हैं तभी तक ही लोग आकर कुशलक्षेम पूछते हैं। ज्यों ही शरीर से प्राण शरीर छोड़ता है, शरीर विकृत होने लगता है और अपनी पत्नी भी उस शरीर से डरने लगती है ॥6॥
(गोविन्द को भजो, गोविन्द को भजो,.....)

yaavatpavano nivasati dehe
taavatprichchhati kushalam gehe
gatavati vaayau dehaapaaye
bhaaryaa bibhyati tasminkaaye

Till one is alive, family members enquire kindly about his welfare. But when the vital air (Prana) departs from the body, even the wife fears from the corpse.॥6॥
(Chant Govinda, Worship Govinda…..)

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SUNIL  PAREEK

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