धर्म एवं दर्शन >> भज गोविन्दम् भज गोविन्दम्आदि शंकराचार्य
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ब्रह्म साधना के साधकों के लिए प्रवेशिका
बालस्तावत् क्रीडासक्तः,
तरुणस्तावत् तरुणीसक्तः।
वृद्धस्तावच्चिन्तासक्तः,
परमे ब्रह्मणि कोऽपि न सक्तः ॥7॥
(भज गोविन्दं भज गोविन्दं,...)
प्रत्येक व्यक्ति बाल्यावस्था में खेलों में आसक्त रहता है, युवावस्था में युवती में (वासना में) आसक्त रहता है, और वृद्धावस्था में चिन्ता (कष्ट) में आसक्त रहता है, परन्तु ब्रह्म में कोई भी आसक्त नहीं होता॥7॥
(गोविन्द को भजो, गोविन्द को भजो,.....)
baalastaavatkriidaasaktah
tarunastaavattaruniisaktah
vriddhastaavachchintaasaktah
pare brahmani koapi na saktah ॥7॥
In childhood we are attached to sports, in youth, we are attached to woman . Old age goes in worrying over every thing . But there is no one who wants to be engrossed in Govind, the parabrahman at any stage. ॥7॥
(Chant Govinda, Worship Govinda…..)
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