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उपन्यास >> फ्लर्ट

फ्लर्ट

प्रतिमा खनका

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :609
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9562

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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।

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ये खबर हलचल पैदा कर सकती थी लेकिन संजय ने इसका दम घोंट दिया!

ये खबर दो बार बिकी। इसका पहला खरीदार खुद संजय था और दूसरा कोई अन्जान। कुछ प्रभावशाली उद्योगपतियों को छोड़कर इस खबर की हवा किसी को नहीं थी और स्पार्क का सी.ई.ओ. उन्ही गिने चुने लोगों में से एक निकला। उसने खबर सुनते ही संजय और मुझे मिलने बुलाया।

संजय उसे टाल रहा था ताकि हमारा कान्ट्रेक्ट उसका मूड बदलने तक साँसे लेता रहे। उसके बाद संजय उसे सम्हाल ही लेता लेकिन ये चाल काम न कर सकी।

जल्द ही मैं और संजय, स्पार्क के शानदार, बड़े से मीटिंग हॉल में बैठे थे। सी.ई.ओ. पर संजय ने सारे हथियार इस्तेमाल कर लिये लेकिन-

‘संजय मैं तुम्हारी बात की कद्र करता हूँ लेकिन इस वक्त हमें सिस्टम को फौलो करना ही होगा। मुझे आज भी अंश पर भरोसा है। ये कामयाब ही नहीं बल्कि खुद कामयाबी है! और मुझे खुशी है हमारे बेस्ट ब्रेन्ड के साथ ये जुडा।’ अब उसने चेहरा मेरी तरफ किया-’आई प्रामिस अंश कि जल्द ही हम फिर एक नया कान्ट्रेक्ट साईन कर रहे होगें लेकिन अभी हमें एक ब्रेक लेना ही होगा। हमें अन्दाजा नहीं है कि ये मैटर और कितना आगे जायेगा। यही परेशानी हमें पिछले एम्बेस्डर के साथ भी आयी थी।’ पीछे आराम से अपनी पीठ कुर्सी पर टिकाते हुए- ‘आप लोग चाहें तो एक अच्छी कीमत चार्ज कर सकते हैं।’

संजय ने मुझे इशारा कर दिया कि मैं पेपर साईन कर दूँ। हम दोनों ही जानते थे कि बिसनेस में बहस की कोई कीमत नहीं होती।

ये पहली लात थी जो मेरे काम पर पड़ी और ये आगे भी मेरे काम पर लात मारने वाली थीं।

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