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उपन्यास >> फ्लर्ट

फ्लर्ट

प्रतिमा खनका

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :609
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9562

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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।

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जैसी हमें उम्मीद थी हालात उसी दिशा में गये। यहाँ से मेरा पतन शुरू हो गया था। लगभग सारे बड़े कान्ट्रेक्टस ने हाथ छुडाने के बहाने बना लिये लेकिन अब भी छुटपुट मेरे हाथ में थे। संजय को मेरी फ्रिक होने लगी। वो सिर्फ मेरे काम को लेकर चिन्ता में नहीं था बल्कि उसे मेरी निजी जिन्दगी की भी चिन्ता थी। मेरे पास अब वक्त की कमी नहीं थी और मैं उस वक्त को बस खुद को बर्बाद करने में खर्च कर रहा था। पार्टीस और लड़कियाँ। बस ये ही दो चीजें थीं जिन पर मेरा वक्त जाया हो रहा था। कहीं न कहीं उसे भी ये गलतफहमी हो चली थी कि भटकना मेरी आदत हो चुकी हैं। उसे मेरी जिन्दगी में किसी ऐसे का इन्तजार था जो मेरी जिन्दगी में ठहराव ला सके।

मम्मी की तरह उसने भी मुझे वही करने के लिए कहा, जो करने के लिए मैं अभी बिल्कुल भी तैयार नहीं था।

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