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उपन्यास >> गंगा और देव

गंगा और देव

आशीष कुमार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :407
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9563

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आज…. प्रेम किया है हमने….


‘बिल्कुल उतना ही प्यार करता है देव गंगा से.....’ देव ने लिखकर बताया।

‘‘अच्छा!‘‘ गंगा ये सुन बड़ी खुश हो गई।

‘‘गंगा! अब हम गोशाला में किसी भी सुन्दर लड़की की ओर नहीं देखते हैं‘‘ देव ने बताया सच-सच।

‘‘क्यों?‘‘ गंगा ने प्रश्न किया।

‘‘....क्योंकि अब हमें तुम ही दुनिया में सबसे सुन्दर लगती हो‘‘ देव ने बताया सच-सच।

‘‘अच्छा!‘‘ साँवली-सलोनी लेकिन लड़ाका गंगा को फिर से बड़ा आश्चर्य हुआ ये जानकर कि अब देव सुन्दर से सुन्दर लड़की की ओर भी नहीं देखता। आज ये गंगा ने जाना....

‘‘अच्छा! कितनी सुन्दर?‘‘ गंगा ने जानना चाहा। अब गंगा अपने आप को सच में दुनिया की सबसे सुन्दर लड़की समझने लगी। मैंने महसूस किया गंगा को देखकर....

‘‘जैसे माधुरी दीक्षित‘‘ देव ने उदाहरण दिया।

गंगा को ये सुन बड़ा मजा आया।

‘‘और?‘‘ गंगा ने फिर से पूछा।

‘‘जैसे करिश्मा कपूर‘‘

‘‘और?‘‘

‘‘जैसे ऐश्वर्या राय‘‘

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