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उपन्यास >> गंगा और देव

गंगा और देव

आशीष कुमार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :407
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9563

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आज…. प्रेम किया है हमने….


‘‘और?‘‘

‘‘जैसे काजोल

...हाँ! हाँ! तुम बिल्कुल काजोल की तरह हो, उसी की तरह किनकिना के बोलती हो, पूरी क्लास में सबसे लड़ायी करती हो! उसी की तरह तुम अपनी आँखों से सबको डराती हो‘‘ जैसे देव को बिल्कुल सही उपमा मिल गयी। देव अपने आप को रोक न सका। उसने सब कुछ बता दिया सच-सच।

गंगा ने पढ़ा और मुँह फुला लिया।

‘‘अच्छा सॉरी! सॉरी!‘‘ देव ने तुरन्त लिखा जिससे तुनकमिजाज गंगा कहीं नाराज-वाराज न हो जाए।

गंगा तुरन्त मुसकुरा उठी। उसे देव को माफ कर दिया।

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‘‘गंगा! आई लव यू द टाइम्स!‘‘ देव ने लिखा फटाक से सोने जैसे स्वर्णिम अक्षरों में और गंगा को दिखाया।

पर ये क्या? पढ़ाई में हमेशा से ही कमजोर गंगा द टाइम्स का मतलब समझ ही न पाई। मैंने पाया...

‘‘देदेदे .......ववववव! इ द टाइम्स का होत है?‘‘ गंगा ने पूछा बड़ी मासूमियत से अपनी रानीगंज की अवधी भाषा में।

‘‘....गंगईया! ऐके मतलब हुआ कि हम तोसे अनन्त प्यार करित है। इ प्यार कभ्भों न डगमगाई, कभ्भों न खत्म होई! इ प्यार के कौनों अन्त नाई है!...इ प्यार अनन्त है!‘‘ देव ने समझाया अपनी देहातिन नादान प्रेमिका को इस प्रकार।

‘‘हाय! ददई!‘‘ गंगा चौंक पड़ी। गंगा को पता चला कि देव उससे अनन्त प्यार करता है।

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