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कविता संग्रह >> कह देना

कह देना

अंसार कम्बरी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :165
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9580

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१०२

कहीं पे जिस्म, कहीं सर दिखाई देता


कहीं पे जिस्म, कहीं सर दिखाई देता
गली-गली यही मंज़र दिखाई देता है

दिखा रहे हैं वो प्यासों को ऐसी तस्वीरें
के जिनमें सिर्फ़ समन्दर दिखाई देता है

गुनाहगार नहीं हो तो ये बताओ हमें
तुम्हारी आँख में क्यूँ डर दिखाई देता है

मुझे ये शक है कहीं वो मेरा रक़ीब न हो
तेरी गली में जो अक्सर दिखाई देता है

तुम्हारा दिल हो या काबा हो या हो बुतख़ाना
हमें तो हर जगह पत्थर दिखाई देता है

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