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कह देना

अंसार कम्बरी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :165
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9580

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२४

मुझपे वो मेहरबान है शायद


मुझपे वो मेहरबान है शायद
फिर मेरा इम्तेहान है शायद

उसकी ख़ामोशियाँ ये कहती हैं
उसके दिल में ज़बान है शायद

मुझसे मिलता नहीं है वो खुलकर
कुछ न कुछ दरमियान है शायद

उसके जज़्बों की क़ीमते तय हैं
उसका दिल भी दुकान है शायद

मेरे दिल में सुकून पायेगा
दर्द को इत्मिनान है शायद

फिर हथेली पे रच गई मेंहदी
फिर हथेली पे जान है शायद

बात सीधी है और गहरी है
‘क़म्बरी’ का बयान है शायद

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