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कविता संग्रह >> कह देना

कह देना

अंसार कम्बरी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :165
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9580

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३१

रौब दुनिया पे अपना जमाने चले


रौब दुनिया पे अपना जमाने चले
वो हवा में इमारत बनाने चले

देश के रहनुमाओं को क्या हो गया
घर में दाने नहीं हैं भुनाने चले

एक जुगनू न बन पाये जो आज तक
और सूरज को रस्ता दिखाने चले

है मुझे ये यक़ीं अब न चल पायेंगे
आज तक आपके जो बहाने चले

जाने क्यूँ उनके माथे पे बल पड़ गये
‘क़म्बरी’ जब हक़ीक़त बताने चले

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