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कह देना

अंसार कम्बरी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :165
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9580

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३२

हम तो कर लेते हैं पत्थर से भी अक्सर बातें


हम तो कर लेते हैं पत्थर से भी अक्सर बातें
जाने क्या बात है करता नहीं पत्थर बातें

कोई करता नहीं यूँ हमसे बराबर बातें
जैसे करते हैं नदी और समन्दर बातें

उनसे करना तो बहुत सोच समझ कर बातें
वरना पहुँचेगी बहुत दूर तक उड़कर बातें

यूँ समझ लीजिये उतने ही सितम ढाता है
जितने इख़लाख़ से करता है सितमगर बातें

मैं इन्हें ख़्वाब कहूँ या कि हक़ीक़त समझूँ
कर रहे हैं जो मेरी आँख से मंज़र बातें

सर कटा दो न झुको ज़ुल्मों-सितम के आगे
चढ़के नैज़े पे यही करता रहा सर बातें

अम्न से पहले हमें क़ैद किया जायेगा
कर रहे हैं यही आपस में कबूतर बातें

आँख सरगोशियाँ करती रही तन्हाई से
और करता रहा पायल से महावर बातें

भीनी-भीनी सी महक घर में बिखर जाती है
जब भी आती हैं तेरे होंठ को छूकर बातें

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