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कह देना

अंसार कम्बरी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :165
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9580

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३३

माना राहों से हट गयीं ग़ज़लें


माना राहों से हट गयीं ग़ज़लें
मत समझना निपट गयीं ग़ज़लें

साग़रों में शराब क्या ढाली
जाने कितनी उलट गयीं ग़ज़लें

उसने जब भी हमारे ख़त फाड़े
टुकड़ों-टुकड़ों में बट गयीं ग़ज़लें

बाढ़ अब मसख़रों की आई है
बह गये गीत, घट गयी ग़ज़लें

फिर रही हैं ये आजतक प्यासी
कितनी नदियों के तट गयी ग़ज़लें

जंग जब-जब छिड़ी क़लम वाली
मोरचों पर भी डट गयी ग़ज़लें

इतनी आसान ‘क़म्बरी’ कर दीं
बच्चे-बच्चे को रट गयी ग़ज़लें

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