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कह देना

अंसार कम्बरी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :165
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9580

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६०

टूटे हैं हमपे इतने सितम टूट गये हैं


टूटे हैं हमपे इतने सितम टूट गये हैं
सच कह रहे हैं तेरी क़सम टूट गये हैं

देखा जो हमने छू के तो एहसास हुआ है
आईना तो टूटा नहीं हम टूट गये हैं

हम बन्द किया आँख जहाँ देख रहे थे
आँखें खुली तो सारे भरम टूट गये हैं

मैख़ाने नहीं जायें तो फिर जायें कहाँ हम
बस्ती में सभी दैरो-हरम टूट गये हैं

फ़नकार हुये जब से क़लम बेंचने वाले
हैं ‘क़म्बरी’ जो अहले-क़लम टूट गये हैं

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