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कविता संग्रह >> कह देना

कह देना

अंसार कम्बरी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :165
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9580

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६५

ऐसे न फेक अब यहाँ पत्थर उछाल कर


ऐसे न फेक अब यहाँ पत्थर उछाल कर
शीशे के हैं मकान ज़रा देख-भाल कर

अमृत का कोई और कलश भी छिपा न हो
देखो फिर एक बार समन्दर खँगाल कर

क़ातिल है कौन इसका मुझे कुछ पता नहीं
मैं फँस गया हूँ लाश से ख़ंजर निकाल कर

एहसाँ जता रहे हैं, कोई फ़ायदा नहीं
नेकी को भूल जाईये दरिया में डाल कर

मैं क्या हूँ क्या नहीं हूँ इसे जानते हैं सब
अब ‘क़म्बरी’ से दूसरा कोई सवाल कर

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