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कविता संग्रह >> कह देना

कह देना

अंसार कम्बरी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :165
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9580

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७६

लौटकर जब कभी जाना मेरे घर कह देना


लौट कर जब कभी जाना मेरे घर कह देना
हो गया है मेरा दुश्मन ये नगर कह देना

क़त्ल होता रहा मैं शामों-सहर कह देना
और अब तक है मेरे जिस्म पे सर कह देना

जो मेरा नाम भी लेगा वो सज़ा पायेगा
आजकल शहर में फैली है ख़बर कह देना

मैं बहुत देर से बैठा हूँ सलीबों के क़रीब
अब किसी बात का मुझको नहीं डर कह देना

ये यक़ीं है मुझे मिल जायेगी मंजिल लेकिन
मुझको करना है अभी और सफ़र कह देना

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