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कह देना

अंसार कम्बरी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :165
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9580

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७७

ऐसा अगर कभी हो क्या लुत्फ़े ज़िन्दगी हो


ऐसा अगर कभी हो क्या लुत्फ़े ज़िन्दगी हो
नजरों में हो समन्दर, होंठों पे प्यास भी हो

उसकी गली में पाँव रह-रह के है ठिठकते
हिरनी सी आँख जैसे खिड़की से झाँकती हो

दरवाज़ा खोलते ही टकरा गया वो मुझसे
गर ऐसा हादसा हो, तो फिर घड़ी-घड़ी हो

दोनों की मोहब्बत में है फ़र्क़ फ़क़त इतना
मैं तुमको जानता हूँ, तुम मुझसे अजनबी हो

ये बात तय करो तो, तुम किसका साथ दोगे
तूफ़ान और दिये में बाज़ी अगर लगी हो

रह जायेंगे जहाँ में अश्आर ऐसे जिनमें
थोड़ा सा फ़िक्रो-फ़न हो, थोड़ी सी शाइरी ही

करते है सब ग़ज़ल में महबूब तुझसे बातें
हों चाहें मीर-ग़ालिब, चाहे वो ‘क़म्बरी’ हो

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