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कविता संग्रह >> कह देना

कह देना

अंसार कम्बरी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :165
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9580

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७८

हम इधर भी रहे, हम उधर भी रहे


हम इधर भी रहे, हम उधर भी रहे
जानते भी रहे, बेख़बर भी रहे

ज़िन्दगी तो रही कैदियों की तरह
बाज़ुओं पर मगर बालो-पर भी रहे

हम तो बढ़ते गये मंजिलों की तरफ़
राह में राहजन, राहबर भी रहे

दूरियाँ भी रहीं रात-दिन की तरह
साथ मेरे वो शामो-सहर भी रहे

दिल में हसरत यही रह गयी ‘क़म्बरी’
ज़िन्दगी का कोई हम-सफ़र भी रहे

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