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उपन्यास >> कटी पतंग

कटी पतंग

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9582

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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।


''यानी तुम मुझे इसीलिए मुसीबत में फंसाना चाहती हो ताकि तुम्हें कोई साथी मिल जाए?''

'''मुझे ही नहीं, हम दोनों को।''

''पहले लड़की तो पसन्द कर लो।''

''मेरा दिल गवाही दे रहा है, वह जरूर अच्छी होगी।''

''और अगर वह आई ही न, तो?''

''तो-! तो-! लेकिन ऐसा सम्भव नहीं।'' वह घबराकर बोली।

उसकी इस घबराहट पर कमल खिलखिलाकर हंस पड़ा। कॉफी का प्याला थरथराकर उसके होंठों से अलग हो गया और वह उसकी आंखों में झांकते हुए बोला-''ऐसा लगता है पूनम! मुझसे कहीं ज़्यादा जल्दी तुम्हें है मेरे ब्याह की।''

''हां, जल्दी तो है ही और हो भी क्यों ना-! बाबूजी ने सारी जिम्मेदारी मुझपर जो डाल दी है।''

''कैसी जिम्मेदारी?''

''तुम्हें ब्याह के लिए राजी करने की।''

''हूं! तो यह सब कुछ तुम्हें विवश होकर करना पड़ रहा है?''

''नहीं-नहीं।'' वह घबराकर बोली और जल्दी-जल्दी कॉफी पीने लगी।

कमल ने देखा उसके माथे पर पसीने की बूंदें उभर आई हैं। क्षण-भर वह उसे निहारता रहा, फिर बोला-''एक बात जानती हो पूनम?''

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