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उपन्यास >> कटी पतंग

कटी पतंग

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9582

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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।


इतने में किसी आहट ने उसे चौंका दिया। वह तुरन्त पलट पड़ी। कमल उस घटना की सारी कहानी सुनाकर इधर आ रहा था।

''कैसी लगी यह जगह, ये लोग?''

''घड़ी-भर में क्या कह सकती हूं! मैंने तो ऐसा सोचा भी न था कि बाबूजी और मांजी इतने आदर से स्वागत करेंगे।''

''और यह ऊपरी स्वागत नहीं है, बल्कि वे दिल से तुम्हें चाहते हैं।''

इतने में शांति बच्चे को उठाए अन्दर चली आई क्योंकि बच्चे ने रोना शुरू कर दिया था। अंजना ने बढ़कर बच्चे को अपनी गोद में ले लिया और वह अंजना के सीने से लगते ही चुप हो गया।

''लो, बदमाश कहीं का! मां से मिलते ही चुप हो गया।'' शांति ने खुशी के आंसू पोंछते हुए कहा।

''बेटा किसका है!'' कमल बोला।

''हट! अच्छा बहू! अब आराम कर ले, बच्चे को भी दूध पिला ले।''

''अच्छा मां, अब जाता हूं।'' कमल ने अंजना के चेहरे से निगाहें हटाकर मां की ओर देखा और फिर रमिया की ओर, जिसने चाय की ट्रे लाकर मेज पर रख दी थी।

''एक कप चाय तो पीते जाइए।'' अंजना ने झिझकते हुए कहा। लेकिन कमल ने जल्दी का बहाना बनाकर इंकार कर दिया।

शांति से रहा नहीं गया बोली-''पहली बार बहू ने कहा है। पीकर जाओ बेटे!''

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