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उपन्यास >> कटी पतंग

कटी पतंग

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9582

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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।


कमल की निगाहों ने उस भीड़ में फिर अंजना को तलाश करना शुरू कर दिया। वह इस भीड़ में अजनबी थी। उसका कोई परिचित नहीं था। कमल को शंका थी कि कहीं वह बोर न हो रही हो। वह अच्छी तरह जानता था कि उसे ऐसी रंगीन जिन्दगी से कोई रुचि नहीं थी। वह तो केवल उसका दिल रखने के लिए इस समारोह में चली आई थी।

कमल ने देखा, वह सबसे परे क्लब के एक कोने में चली गई थी और झील के किनारे बने हुए एक पत्थर के चबूतरे के पास खड़ी थी-उस भीड़ के शोर से बिलकुल अलग-थलग और अकेली।

कमल ने उसके लिए प्लेट में खाने की दो-चार चीजें रखीं और उस चबूतरे तक जा पहुंचा।

वह अंजना के पास जाकर रुक गया जो उसकी आमद से बेखबर भील के नीले और गहरे जल की ओर देख रही थी। वह चुपचाप खड़ा उसके पलकों पर उगे हुए आंसुओं की उन बूंदों की ओर देखने लगा जिनमें उस नीली झील का प्रतिबिम्ब नाच रहा था।

''ओह! आप!'' वह बरबस चौंक उठी।

''तुम्हारे मनोभावों का अध्ययन कर रहा था।''

''मैं तो...योंही...मैं...''

''उस भीड़ से अलग आकर खड़ी हो गईं!''

''और करती भी क्या?''

''मैंने तो तुम्हें इसलिए बुलाया था कि कुछ देर के लिए तुम्हारा मन बहल जाए वातावरण बदल जाए। वह एकांत जो सदा तुम्हें डसता रहा है, इस भीड़ और चहलपहल में खो जाएगा।''

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