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उपन्यास >> कटी पतंग

कटी पतंग

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9582

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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।


अंजना ने उसकी बात ध्यान से सुनी और मन-मस्तिष्क की तराज़ू में तौलने लगी। इसमें झूठ भी क्या था? जब अपना मन साफ है तो यह भय कैसा? लेकिन वह अपनी मानसिक दशा बता नहीं सकती थी। इस पवित्र गंगा में भी पाप की एक स्याह लहर निरंतर बह रही थी लेकिन इस सत्य से पर्दा हटाने की क्षमता उसमें नहीं थी।

कमल ने प्लेट में से केक का एक टुकड़ा उठाया और उसे अंजना के मुंह की ओर बढ़ा दिया। वह तनिक झिझकी, लेकिन कमल ने जबरदस्ती वह टुकड़ा उसके मुंह में ठूंस दिया।

''तुम्हारी भी बच्चों जैसी हालत है पूनम!'' कमल ने कहा।

''क्या?'' भरे हुए मुंह से अंजना फुसफुसाई।

''जबरदस्ती खिलाना पड़ता है।''

यह सुनकर वह हंसने लगी। एक मुद्दत के बाद कमल ने उसके चेहरे पर स्वच्छंद मुस्कान देखी थी, ठीक बच्चों जैसी, लेकिन फिर दूसरे ही क्षण वह मौन हो गई जैसे उसे कोई बात याद आ गई हो।

''क्यों? क्या हुआ?''

''कुछ नहीं, लेकिन लोग क्या सोचेंगे?''

''फिर वही! दिल ने हंसना चाहा, तुम हंसने लगीं। सोग तो भाग्य ने दी ही रखा है पूनम! लेकिन इस सोक को हल्का करना तो अपने वश में है।''

अंजना ने सिर नीचे झुका लिया। हाथ में पकड़े हुए बैग में से रुमाल निकालकर मुंह साफ किया और फिर बैग में से एक डिबिया निकालकर कमल को भेंट की। वह हैरान होकर पहले अंजना और फिर उस मखमली डिबिया की ओर देखने लगा। कमल ने वह डिबिया ले ली और धीरे से उसे खोला। उसमें सोने के कफलिंक्स की एक जोड़ी थी।

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