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उपन्यास >> कटी पतंग

कटी पतंग

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9582

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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।


''और आप?''

''एक।'' अंजना ने उत्तर दिया।

''आधा-एक-और मम्मी! दो!'' कमलेश ने गिन-गिनकर प्याले में चीनी डाली और फिर प्यालों में चाय उंडेलने लगी।

मिसेज खन्ना ने बेटी की सराहना करते हुए कहा-''घर में तो यह बड़ी लाडली है। एक गिलास पानी भी पीना हो तो नौकरों को आवाजें देने लगती है।''

''क्यों न दे! भगवान ने कृपा जो कर रखी है।'' यह कहते हुए कमल ने कमलेश की ओर देखा जिसके हाथ चाय बनाते हुए कांप रहे थे।

अंजना बोल उठी-'मैके में लड़कियां लाडली होती हैं। ससुराल में कदम रखते ही सारा लाड़-प्यार मां-बाप के घर रह जाता है।''

''आप ठीक कहती हैं बहन! लेकिन आपने अभी तक अपना परिचय नहीं दिया।''

''मैं...मैं...'' वह हकला गई।

''पूनम।'' कमल तुरत बोल उठा-''यूं तो रिश्ता कुछ नहीं, लेकिन फिर भी मेरे बहुत करीब हैं।''

''आप साफ-साफ कहिए ना।'' अंजना ने टोक दिया और अपना परिचय स्वयं दिया। यह भी बता दिया कि वह लाला जगन्नाथ की बहू है।

जब मिसेज खन्ना ने लाला जगन्नाथ के बेटे की चर्चा छेड़ी तो अंजना का दमकता हुआ चेहरा मुरझा गया। पलकें भीग गईं।

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