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उपन्यास >> कटी पतंग

कटी पतंग

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9582

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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।


''छि: छि:! कितने घटिया लोग हैं!'' शालिनी ने घृणा से उसकी ओर देखते हुए कहा।

''जिन्दगी का मजा ले रहे हैं, और क्या-!'' कुमुद बोली।

''यह भी कोई तरीका है! देखो, किस बेशर्मी से किसी गैर मर्द के गले का हार बनी हुई है!''

''गैर तो हमारे लिए है उसका तो अपना होगा।''

कमुद की बात पर सबकी हंसी छूट गई, लेकिन अंजना चुपचाप उनकी बातें सुनती रही। वह चोर-निगाहों से अब भी बनवारी की किश्ती की ओर देख रही थी जो धीरे धीरे दूर होती जा रही थी। उसे लगा जैसे नशे में केवल बनबारी ही नहीं उसकी नाव भी झूम रही है।

''तुम क्या सोच रही हो भाभी?'' शालिनी ने उसे मौन देखकर पूछा।

''कुछ भी नहीं।'' अंजना बड़बड़ाई।

''झूठ!'' आशा ने बात पकड़ते हुए कहा-''हंसते-हंसते अचानक यह खामोशी कैसी?''

''इसमें भी कोई पूछने की बात है! मैं जानती हूं भाभी के दिल की बात।'' कुमुद तुरंत बोली।

अंजना झेंप गई और चकित दृष्टि से उसके अधरों की छिपी हुई चंचल मुस्कान को देखने लगी जैसे सचमुच वह उसके दिल की बात भांप गई हो।

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