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उपन्यास >> कटी पतंग

कटी पतंग

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9582

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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।


शालिनी ने तुरंत पूछा-''क्या जान गई है तू?''

''कह दूं भाभी?''

अंजना ने उसकी आंखों की चमक देखी और हूं कहकर सिर झुका लिया।

कुमुद कुछ रुककर बोली-''शायद भाभी को अपना हनीमून याद आ गया है!''

कुमुद ने वह बात कहकर अंजना का दिल छलनी कर दिया, लेकिन वह उसे सह गई और एक फीकी-सी मुस्कराहट के साथ बोली-''ठीक कहती हो कमुद! यह जीवन स्मृतियों का सहारा ही तो ढूंढ़ता रहता है चाहे वे खुशी दें, या चुभन दें।''

अंजना की बात सुनकर सब चुप हो गईं और मौन धारण किए उसे निहारने लगीं जिसकी पलकों पर आंसू मोतियों की तरह चमक रहे थे।

वह फिर मुस्करा पड़ी और लड़कियों को दूर पहाड़ी चोटियां दिखाने लगी जो सुनहरी धूप में नीले आकाश तले अकेली और शांत खड़ी थीं।

जब अंजना लड़कियों को लिए हुए घर लौटी तो वे सब उपवन में घास के फर्श पर सुस्ताने बैठ गईं। अंजना ने चाय के लिए पूछा और वह बनाने के लिए कहने को अन्दर चली गई।

सदर हाल में पहुंचते ही वह ठिठक गई। बाबूजी के साथ कमल बाबू बैठे शतरंज खेल रहे थे। आहट पाते ही कमल ने अंजना की ओर देखा और इशारों ही इशारों में दोनों ने एक-दूसरे का स्वागत किया।

''कहां गए थे तुम सब लोग?'' लाला जगन्नाथ ने पूछा।

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