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उपन्यास >> कटी पतंग

कटी पतंग

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9582

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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।


''झील तक, योंही जरा घूमने-फिरने।''

''शालो कहां है?'' कमल ने पूछा।

''बाहर लान में, सहेलियों के संग बैठी है।''

''चलो अच्छा हुआ, कुछ हंसे-बोलेगी, वरना कल से घर बैठी बोर हो रही थी।''

''खैर, वह बोर हो रही थी या नहीं, लेकिन मेरे घर की रौनक जरूर बढ़ गई है।''

''वह कैसे अंकिल?''

''आज मैंने बहू को पहली बार हंसते देखा है इस घर में।'' लालाजी ने बहू की ओर देखकर कहा।

अंजना यह सुनकर झेंप गई और लजाकर मुंह दूसरी ओर फेर लिया। कमल के अधरों पर मुस्कान खेलने लगी।

वह शालो और उसकी सहेलियों के लिए चाय बनाने चली गई और कमल चुपचाप बैठा शतरज की चालें चलता रहा।

''अंकिल! कितनी सौभाग्यवती है आपकी बहू, जिसके सिर पर आपका साया है!''

''सौभाग्यशाली तो हम हैं कमल जिन्हें इतनी अच्छी बहू नसीब हुई! यह भी मैं अपने कर्मों का फल भुगत रहा हूं। न मैं इस चांद जैसी बहू को ठुकराता और न मुझे यह सज़ा मिलती।'' यह कहते-कहते उनकी आंखों में आंसू उतर आए लेकिन उन्होंने बड़े धीरज से काम लिया और पुन: खेल में व्यस्त हो गए।

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