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उपन्यास >> कटी पतंग

कटी पतंग

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9582

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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।


''तो मैं वहीं चला जाता हूं।''

''तुम अन्दर चले आओ ना! मैं उन्हें खबर किए देती हूं।''

''नहीं, मैं खुद ही मिल लूंगा। तुम तो जानती हो, वह मेरी सूरत देखकर ही जल उठती है।''

''हूं।''

''देखो, तुमसे कोई पूछे कि मालकिन कहां है तो कह देना कि हमें मालूम नहीं।''

रमिया ने सिर हिला दिया और बनवारी चला गया, लेकिन रमिया के लिए एक पहेली छोड़ गया। ऐसी ही बात मालकिन ने भी उससे कही थी कि कोई उसके बारे में पूछे तो कह देना कि यहीं पेड़ों तले हैं।

उसने इस उलझन को सुलझाने की कोशिश नहीं की और इधर-उधर देखने के बाद अपनी चोली से दस का वह नोट निकालकर देखने लगी। नोट बिल्कुल नया था। उसकी उंगलियों में बड़ी मनोहर खड़खड़ाहट पैदा कर रहा था। वह उसे देखकर मुस्करा उठी और फिर उसे अपनी चोली में अड़स लिया।

रमिया का इशारा पाकर बनवारी धीरे-धीरे उधर ही बढ़ता गया जिधर कुछ देर पहले अंजना गई थी। पिछवाड़े का यह भाग उजाड़ और सुनसान था। यह रास्ता झील के दूसरी ओर पैदल जाने के लिए बना हुआ था।

बनवारी उसी रास्ते पर दबे दबे कदम उठाता हुआ बढ़ता चला गया और घने वृक्षों के उस झुरमुट में पहुंच गया। इस समय वह एक भेड़िये की तरह चौकन्ना चारों ओर देख रहा था और अपने शिकार की गंध पाने का प्रयास कर रहा था।

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