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उपन्यास >> कटी पतंग

कटी पतंग

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9582

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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।


सहसा बनवारी के कानों में अंजना की सुरीली आवाज पड़ी। वह सब कुछ भूल-बिसारकर कुछ गुनगुना रही थी। बनवारी बढ़ता हुआ उस पेड़ के तने के पास पहुंच गया जहां से वह उसे भली भांति देख सकता था।

वह होंठों ही होंठों में कोई गीत गुनगुना रही थी और निश्चिंत जंगली घास पर बैठी झील के उस शांत जल की ओर देख रही थी जो एक खाड़ी बनाता हुआ जंगल के उस कोने तक आ गया था।

अकस्मात् उसकी गुनगुनाहट पेड़ों में दबकर रह गई और वह हंसों के उस जोड़े की ओर टिकटिकी बांधकर देखने लगी जो उस ठहरे हुए पानी में नहा रहा था। उन पक्षियों को फड़फड़ाते देख उसका मन खिल उठा और आंखें हर्ष से चमक उठीं।

वह बनवारी की उस विषैली दृष्टि से नितांत अचेत थी जो कुछ ही क्षणों में उसकी आंखों की चमक अपने विष से हर लेने वाली थी।

बनवारी चील की तरह उसके फड़फड़ाते हुए हृदय को अपने पंजों में दबोचने के लिए आगे बढ़ा और अंजना की पीठ के पीछे आकर रुक गया। उसने एक जंगली फूल तोड़कर अंजू के गाल पर दे मारा। वह एकदम हड़बड़ाकर रह गई।

जैसे ही उसने उस शैतान को अपने पास देखा, उसके चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं। अब वह संभलकर बैठ गई और चिढ़ती हुई बोली-''तुम! तुम यहां क्या कर रहे हो?''

''अपनी अंजू का पीछा।''

''क्यों?''

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