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उपन्यास >> कटी पतंग

कटी पतंग

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9582

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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।


ठीक इसी समय कोई कमरे में आ गया। अंजना ने मुड़कर देखा-सामने रमिया खड़ी थी। रमिया ने उस सोने की जंजीर को बाहर फेंकते हुए देख लिया था। वह चिल्ला उठी-''यह क्या बहू रानी!''

''चुप रह! तुझे इससे क्या?''

''मुझे तो कुछ भी नहीं, लेकिन...''

''जा, अपना काम कर।''

''जी।''

रमिया चुपचाप बिस्तर लगाने लगी। उसकी निगाहें बारबार मालकिन की घबराहट का अनुमान लगा रही थीं। कमरे में शांति छाई थी लेकिन वादी में चलती हुई ठंडी हवा सांय-सांय गूंज रही थी।

जब काफी देर तक मालकिन ने रमिया से कुछ नहीं कहा तो वह बोल उठी-''जानती हो बहू रानी! आज रात तूफान आने वाला है।''

''तुम्हें कैसे मालूम?'' वह चिढ़कर बोली।

''पहाड़ों से आती हुई यह आवाज सुनाई दे रही है ना? यह तूफान आने की निशानी है।''

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