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उपन्यास >> कटी पतंग

कटी पतंग

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9582

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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।


बहू की आवाज ने उन्हें चौंका दिया। वह स्नान करके बाहर आ चुकी थी। उसने ज्योंही रमिया को आवाज दी, लालाजी ने वह खत मुट्ठी में भींच लिया और जल्दी से उसे कोट की अन्दरूनी जेब में डाल लिया।

वह नौकरानी को तलाश करती हुई और अपने गीले बाल झटकती हुई बड़े हाल तक चली आई जहां लालाजी बैठे हुए थे। उन्हें देखते ही वह ठिठक गई और जल्दी से आंचल ठीक करके सिर झुका लिया।

उस आंचल में छिपी वह देवी आज उनके सामने मक्कार औरत का रूप धारण किए खड़ी थी।

अंजना ने जब उन्हें अपनी ओर कुछ विचित्र रूप से देखते हुए देखा तो वह पास आकर बोली-''मैं आपको दवा देना तो भूल ही गई बाबूजी!''

''मैंने पी ली है।''

तभी अंजना ने सामने मेज पर रखी दवा की उस शीशी को देखा जिसमें अब केवल दो गोलियां बाकी बची थीं।

उसने शीशी हाथ में लेकर कहा-''डाक्टर ने कहा है कि दस दिन तक यही दवा जारी रहनी चाहिए।''

''डाक्टरों का क्या है! दवा लिख दी और चले गए। यह सोचना तो हमारा काम है कि यह कितनी महंगी मिलेगी।''

''ऐसा भी क्या बाबूजी! जान है तो जहान है।''

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