लोगों की राय

उपन्यास >> कटी पतंग

कटी पतंग

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9582

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

38 पाठक हैं

एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।


''तुम ठीक कहती हो, लेकिन अब इस बुढ़ापे में अपना ख्याल भी तो खुद हमें ही रखना है।''

अंजना ने ध्यान से देखा। उनकी पलकों में आंसू बिखरते-बिखरते रह गए थे। वह उनके पास चली आई और तौलिये से उनका मुंह साफ कर दिया जो नाश्ते के बाद ठीक से साफ नहीं हो सका था।

''बाबूजी!'' उसने बड़े आदर-भाव से उनकी ओर देखा।

लाला जगन्नाथ ने भी पलकें उठाकर उसकी ओर देखा। उनका चेहरा अत्यधिक गंभीर था।

''एक बात कहूं, आप बुरा तो नहीं मानेंगे?''

उसके सवाल को सुनकर लालाजी की मानो सांस रुक गई। ऐसा लगा जैसे वह अपने जीवन का वह रहस्य उनसे खोलने वाली हो। उन्होंने डरते-डरते सिर हिलाया।

अंजना धीरे से बोली-''मैंने एक लाख के बीमे पर साइन कर दिए हैं।''

''वह तो मैं जानता हूं।''

''लेकिन उस रुपये के अधिकारी आप हैं, केवल आप।''

लालाजी ने गहरी नजरों से बहू की झील जैसी आंखों में झांका। उन्हें इस भावुकता के पीछे आज छल की झलक दिखाई दी। उन्हें बहू की हर बात, हर हरकत में बनावट का आभास हो रहा था। उसकी पलकों में आए हुए आंसू भी आज अंगारे मालूम हो रहे थे।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book