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उपन्यास >> कटी पतंग

कटी पतंग

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9582

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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।


अंजना ने प्रश्नात्मक दृष्टि से लालाजी की ओर देखा तो वे बोले-''यह दूसरा फार्म है-हलफिया बयान देने के लिए। सरकारी कामों का भी जवाब नहीं, हमीं से पूछते हैं कि हम कौन हैं!''

''वे भी मजबूर हैं अंकिल! वरना आप जानते हैं कि हर बरस कितने ही बीमे वे लोग ले जाते हैं जिनका कोई हक नहीं होता। क्यों पूनम?''

शालिनी ने तो योंही कह दिया था, लेकिन उसकी इस बात पर अंजना व्याकुल हो उठी। वह पत्थर की मूरत बनी वहीं जमकर रह गई।

अंजना ने कांपते हाथों से उस हलफनामे पर हस्ताक्षर कर दिया। लालाजी उसकी हर हरकत को बड़े ध्यान से देख रहे थे। हस्ताक्षर करते समय वे उंगलियों की कंपन को देखने लगे।

''बहू का ख्याल है कि यह रकम मुझे मिलनी चाहिए।'' अचानक वे बोले।

''इसमें झूठ क्या है? उसपर तो आपका ही अधिकार है।'' कमल ने तुरत उत्तर दिया-''जब तक आप उसके सरपरस्त हैं, उसे अपने अधिकारों की क्या चिंता है?''

''लेकिन बुढ़ापा ये जिम्मेदारियां कब तक उठा सकता है? और फिर यह उस बेटे की कमाई है जो उसकी जिंदगी में नसीब न हुई। अब इसे लेकर क्या करूंगा?''

''एक बात कहूं बाबूजी?'' अंजना ने झिझकते हुए पूछा।

''कहो।''

''आप इस रकम को राजीव के नाम जमा करा दें ताकि उसका भविष्य सुरक्षित हो जाए। मैं इसे बिल्कुल नहीं छूऊंगी।''

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