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उपन्यास >> कटी पतंग

कटी पतंग

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9582

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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।


अंजना ने उन्हें अपने दिल के फैसले से सूचित कर दिया और अपने कमरे में चली गई। शालिनी ने भी उसका पीछा किया। लालाजी और कमल दोनों एक-दूसरे की ओर देखते रह गए।

बहू राजीव से इतना स्नेह रखती है, उन दोनों को यह जानकर कुछ अजीब-सा लगा।

''कमल!''

''यस अंकिल!''

''कभी-कभी यह सोचकर दिल दहल जाता है कि मेरे बाद बहू का क्या होगा!''

''आप भी क्या सोचने लगे? कल किसने देखा है?''

''तुम ठीक कहते हो, लेकिन आज को तो परख रहा हूं।''

''मैं समझा नहीं।''

''पड़ोस की मिसेज मुखर्जी कह रही थीं कि बहू को हर किसी से घुल-मिलकर नहीं रहना चाहिए। बदनामी का खतरा रहता है। खानदान की इज्जत का सवाल है।''

''वह तो कहेगी ही। विधवा है ना! किसी दूसरे को हंसता कैसे देख सकती है? वरना सारा नैनीताल जानता है कि वह क्या है।''

''लेकिन हमें तो जमाने के साथ चलना चाहिए। इसी समाज में रहना है हमें।''

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