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उपन्यास >> कटी पतंग

कटी पतंग

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9582

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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।


''यही ना, कि ऐसी चमकदार साड़ी पहनने की तुम्हें इजाजत नहीं?''

''आप समझते हैं तो फिर क्यों कुरेदते हैं?''

''इसलिए कि एक न एक दिन तुम्हें यह बनावटी लिबास उतार-कर अपनी पसंद का कपड़ा पहनना होगा।''

''भइया ने ठीक कहा है और फिर यह साड़ी तो भइया की ओर से तुम्हें एक भेंट के रूप में है।''

''हां-हां, मेरी ओर से एक तुच्छ भेंट!''

''अच्छा, आपकी यह भेंट ले लूंगी।''

''कब?''

''समय आने पर।''

कमल ने जिद तो बहुत की लेकिन अंजना ने उसे विवश कर दिया कि वह भेंट उस समय वह नहीं ले सकती। वह निराश हो गया।

अधीर होते हुए बोला-''वह समय बहुत दूर नहीं।''

लाज के मारे वह सहम गई और अपने दांतों से नाखून काटने लगी। शालिनी को व्यस्त देख और कमल के नयन-बाणों से विह्वल होकर वह चुपके से खिसककर शोरूम के बाहर वाले दालान में चली गई। कमल ने जब बिल चुकाना चाहा तो शालिनी दुकानदार से दूसरे डिजाइन निकलवा बैठी।

कमल काफी देर से इस जनाना शापिंग से बोर हो रहा था। अत: धीरे-धीरे चलता हुआ वहां आ पहुंचा जहा अंजना अकेली खड़ी सामने फैली हुई झील को देख रही थी। वह चुपचाप उसके पास आ खड़ा हुआ।

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