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उपन्यास >> कटी पतंग

कटी पतंग

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9582

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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।


''अंजना सामीप्य के आभास से चौंक पड़ी।

''क्या देख रही हो?''

''कुछ नहीं। शालो कहां है?''

''उसी धुन में है। एक साड़ी का रंग बदलने की सोच रही है।''

वह चुप हो गई और इससे पहले कि वह अपने पत्र के बारे में कुछ पूछती वह अपने चोर-दिल से घबराने लगी और फिर योंही बात करने के लिए उसने कह दिया-''यह आपने अच्छा नहीं किया।'' ''क्या?''

''मेरे बारे में शालो को सब कुछ बता कर।''

''ओह! अरे वह तो मेरे हृदय की पीड़ा थी जो मैंने बता दी। तुम्हारे बारे में तो कुछ नहीं कहा मैंने।''

''सच?''

''हां पूनम! और अगर उससे अपनी यह वेदना नहीं कहता तो यह बात पिताजी तक कैसे पहुंचती?''

''क्या वे मान जाएंगे?''

''क्यों नहीं? इस समय तो उन्हें अपने बेटे की खुशी का ख्याल है, अपनी इज्जत का नहीं।''

''वे यह सब कुछ जानते हुए भी ऐसी बहू को अपना लेंगे?''

''अपनाना ही होगा पूनम! मैं जो तुम्हें अपना बना रहा हूं।''

वह उसके और पास आ गया। अंजना ने उसकी आंखों में झांककर देखा। अब उन आंखों में उसे अपनी ही स्नेहमूर्ति दिखाई दी।

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