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उपन्यास >> कटी पतंग

कटी पतंग

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9582

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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।


अंजना ने बच्चे को दूध पिलाकर बाहर दालान में खेलने के लिए बिठा दिया और स्वयं बंगले के आसपास के दृश्य देखने लगी जो रात के भयानक अंधेरों से छुटकारा पाकर उजला हो चुका था।

वर्षा के बाद मौसम खिल उठा था। प्रात: का प्रकाश धरती से आकाश तक फैल गया था और इसमें भीगी हरियाली बड़ा मनोहर दृश्य उपस्थित कर रही थी। चिड़ियों की चहचहाहट ने अंजना के हृदय की बेचैन तरंगों में भी आशाओं की लय भर दी और कल तक जो दुनिया उसे स्याह और भयानक लग रही थी, आज बड़ी हृदय-ग्राही नजर आने लगी।

उसकी निगाहें घूमती-फिरती अचानक उस गैरेज के पास जा रुकीं जहां कमल अपनी जीप गाड़ी का हुड खोले गाड़ी का तेल और पानी चेक कर रहा था। एक प्रतिमा की भांति अडिग वहीं खड़ी वह उसे निहारती रही।

कमल ने हुड बन्द किया और निगाहें उठाईं। दोनों ने एक दूसरे को देखा-और अधरों पर मुस्कान बिखर गई। वह अपना हाथ पोंछता हुआ अंजना की ओर बढ़ आया।

''हलो! गुड मॉर्निंग!''

''नमस्ते।'' अंजना ने झिझकते हुए उसका स्वागत किया।

''कहिए, रात कैसी कटी?''

''जी!'' वह चौंक पड़ी।

''मेरा मतलब था-नई जगह, नया वातावरण, नये लोग! ऐसे में नींद आई या नहीं?''

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