उपन्यास >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
''कुछ समय सोने में और कुछ जागने में कट ही गया।''
''शायद आंधी, तूफान और वर्षा के शोर ने सोने नहीं दिया?''
इतने में घर का नौकर रामू नाश्ता लिए आ पहुंचा। अंजना ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी और कमल के लिए चाय बनाने लगी। वह पास पड़ी कुर्सी खींचकर नाश्ता करने बैठ गया।
अंजना का जी सवेरे-सवेरे कुछ खाना नहीं चाह रहा था। कमल ने मजबूर किया। उसने तनिक धीमे स्वर में कहा-''बस, एक प्याली चाय पीऊंगी आपके साथ।''
अंजना ने चाय का पानी अपनी प्याली में उंडेला और उसमें चीनी-दूध मिलाने लगी।
''एक रात साथ क्या रहे, लगता है बरसों पुरानी मुलाकात है।'' चाय की चुस्की भरते हुए कमल ने कहा।
अंजना के होंठ प्याली के किनारे जैसे चिपककर रह गए। उसने कनखियों से कमल की ओर देखा जो तेजी से मुंह चला रहा था।
''सोचती हूं आपका यह एहसान कैसे उतारूंगी?''
''एक ढंग है।'' कमल ने बड़ी गम्भीरता से कहा।
''क्या?'' वह चौंक उठी।
''जिस घर में आप जा रही हैं, वह शेखर की मौत के बाद वीरान हो गया है। उसे फिर से आबाद कर देना; भले ही अपनी खुशियों को कुचलना पड़े, लेकिन उस घर की खोई हुई बहार को लौटा देना। शायद शेखर के मां-बाप इस भुलावे में कुछ दिन और जी जाएं।''
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