व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> मन की शक्तियाँ मन की शक्तियाँस्वामी विवेकानन्द
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मनुष्य यदि जीवन के लक्ष्य अर्थात् पूर्णत्व को
फिर हममें से दूसरे को, जिसके पास भी उसी तरह का एक दूसरा कागज था, कोई एक वाक्य सोचने को कहा गया। उसने अरबी भाषा का एक फिकरा सोचा। अरबी भाषा का जानना तो उसके लिए और भी असम्भव था। वह फिकरा था ‘कुर्आन शरीफ’ का। लेकिन मेरा मित्र क्या देखता है कि वह भी कागज पर लिखा है।
हममें से तीसरा था वैद्य। उसने किसी जर्मन भाषा की वैद्यकीय पुस्तक का वाक्य अपने मन में सोचा। उसके कागज पर वह वाक्य भी लिखा था।
यह सोचकर कि कहीं पहले मैंने धोखा न खाया हो, कई दिनों बाद में फिर दूसरे मित्रों को साथ लेकर वहाँ गया। लेकिन इस बार भी उसने वैसी ही आश्चर्यजनक सफलता पायी।
एक बार जब मैं हैदराबाद में था, तो मैंने एक ब्राह्मण के विषय में सुना। यह मनुष्य न जाने कहाँ से कई वस्तुएँ पैदा कर देता था। वह उस शहर का व्यापारी था, और ऊँचे खानदान का था। मैंने उससे अपने चमत्कार दिखलाने को कहा। इस समय ऐसा हुआ कि वह मनुष्य बीमार था। भारतवासियों में यह विश्वास है कि अगर कोई पवित्र मनुष्य किसी के सिर पर हाथ रख दे, तो उसका बुखार उतर जाता है।
यह ब्राह्मण मेरे पास आकर बोला, “महाराज, आप अपना हाथ मेरे सिर पर रख दे जिससे मेरा बुखार भाग जाय।”
मैंने कहा, “ठीक है, परन्तु तुम हमें अपना चमत्कार दिखलाओ।”
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