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धर्म एवं दर्शन >> मरणोत्तर जीवन

मरणोत्तर जीवन

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :65
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9587

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ऐसा क्यों कहा जाता है कि आत्मा अमर है?

  • देह वह वस्तु नहीं और न मन ही वह वस्तु है।
  • देह का नाश तो प्रतिक्षण होता रहता है और मन तो सदा बदलता रहता है। देह तो एक संघात है और उसी तरह मन भी…
  • परन्तु स्थूल जड़ भूत के इस क्षणिक आवरण के परे, मन के सूक्ष्म आवरण के भी परे, मनुष्य का सच्चा-स्वरूप नित्य मुक्त सनातन आत्मा अवस्थित है।
- स्वामी विवेकानन्द

यह पुस्तक स्वामी विवेकानन्दजी के मौलिक अंग्रेजी लेखों का हिन्दी अनुवाद है। इस पुस्तक में स्वामीजी ने पुनर्जन्म के सम्बन्ध में हिन्दू-मत तथा पाश्चात्य-मत दोनों की बडी सुन्दर रूप से विवेचना की है और इन दोनों मतों की पारस्परिक तुलना करते हुए इस विषय को भलीभाँति समझा दिया है कि हिन्दुओं का पुनर्जन्मवाद वास्तव में किस प्रकार नितान्त तर्कयुक्त है, साथ ही यह भी कि मनुष्य की अनेकानेक प्रवृत्तियों का स्पष्टीकरण केवल इसी के द्वारा किस प्रकार हो सकता है।



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